Wednesday, July 22, 2015

चाँद और ख्वाहिशें..

हवाओं में तैरो, आसमां से उतर आओ,
ऐ चाँद, कभी कभी ज़मीन पर भी नज़र आओ...


पलों में रूमानियत थोड़ी और बढ़ी है,
घड़ी दो घड़ी तो और ठहर जाओ...


सुनो, क्या गाती है एहसासों की धड़कन,
महसूस करोगे, थोड़े करीब अगर आओ...


सौदा मेरी नींद का, तुमसे, ख्वाहिशों के लिए,
चलो, अब मेरी हथेली में नज़र आओ...

- © Sneha Rahul Choudhary 


[फोटो साभार - गूगल]

12 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.07.2015) को "मगर आँखें बोलती हैं"(चर्चा अंक-2046) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर!

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  2. सुनो, क्या गाती है एहसासों की धड़कन,
    महसूस करोगे, थोड़े करीब अगर आओ...
    बहुत लाजवाब ... करीब आ के ही जाना जा सकता है गहरे एहसास को ...
    हर शेर कमाल का है ...

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    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद सर :)

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  3. क्या बात है। चाँद हथेली पर ......

    बहुत खूब।

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  4. बहुत प्‍यारा अहसास

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    1. धन्यवाद रश्मि मैडम :)

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    1. शुक्रिया ज्योति मैडम :)

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  6. बहुत ही भावनात्मक. बहुत खूब.....क्या बात है।

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    1. बहुत शुक्रिया संजय जी

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मेरा ब्लॉग पढ़ने और टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.